“मेक इन इंडिया” पहल से एपीआई के आयात पर निर्भरता कम होगी: डॉ. जितेंद्र सिंह

नई दिल्ली: केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने आज कहा कि “मेक इन इंडिया” पहल सक्रिय फार्मास्युटिकल घटक (एपीआई) के आयात पर निर्भरता को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। उन्होंने कहा कि दवाओं के घरेलू विनिर्माण को सुदृढ़ करके, हम न केवल आत्मनिर्भरता को बढ़ावा दे रहे हैं, बल्कि यह भी सुनिश्चित कर रहे हैं कि महत्वपूर्ण स्वास्थ्य सेवा आपूर्ति आसानी से उपलब्ध हो।

डॉ. सिंह ने छठे सीआईआई फार्मा एवं लाइफ साइंसेज शिखर सम्मेलन: 2024 में अपने संबोधन के दौरान कहा, “यह फोरम उद्योग जगत के नेताओं, सरकारी अधिकारियों और शिक्षाविदों के बीच विचारों के आदान-प्रदान के लिए एक महत्वपूर्ण मंच है और वैश्विक औषधि तथा जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में नेतृत्व करने के लिए भारत के दृढ़ संकल्प का उदाहरण है।”

भारत की औषधि उत्पादन क्षमता
उन्होंने भारत को उच्च गुणवत्ता वाली दवाओं के केंद्र के रूप में उभरने के लिए सराहना की। “औषधि उत्पादन में अब हम मात्रा के हिसाब से तीसरे स्थान पर और कीमत के हिसाब से 14 वें स्थान पर हैं। जेनेरिक दवाओं के मॉडल से जैव फार्मास्युटिकल्स और बायोसिमिलर दवाओं का विकास उद्योग के भीतर सबसे उल्लेखनीय बदलावों में से एक है,” उन्होंने कहा।

जैव प्रौद्योगिकी में नेतृत्व
डॉ. सिंह ने बताया कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी चाहते हैं कि भारत जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अगली औद्योगिक क्रांति का नेतृत्व करे। पीएलआई योजना जैसी पहल के कारण भारत 2030 तक बायोफार्मास्युटिकल्स, बायो-मैन्युफैक्चरिंग और जीवन विज्ञान में वैश्विक नेता बनने की दिशा में अग्रसर है।

उन्होंने कहा, “विश्व में मरीजों द्वारा ली जाने वाली हर तीन टेबलेट में से एक का निर्माण भारत में होता है। हाल ही में केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) द्वारा किए गए सर्वेक्षण में केवल 0.0245 प्रतिशत घटिया दवाएं पाई गईं।”

कोविड-19 के लिए वैक्सीनेशन में भारत की उपलब्धि
डॉ. सिंह ने कोविड-19 के लिए विश्व की पहली डीएनए वैक्सीन और किशोरियों में गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर रोकथाम के लिए पहले ह्यूमन पेपिलोमा वायरस (एचपीवी) के विकास को भारत के वैश्विक स्वास्थ्य में नेतृत्व का सर्वोत्तम उदाहरण बताया।

जैव अर्थव्यवस्था का विकास
उन्होंने बताया कि भारत की जैव अर्थव्यवस्था मात्र दस वर्षों में 13 गुना बढ़ गई है, जिसका श्रेय लगभग 6,000 जैव-स्टार्टअप के संपन्न तंत्र को जाता है। उन्होंने उद्योग को अनुसंधान एवं विकास में निवेश करने और युवा उद्यमियों का समर्थन करने का आह्वान किया, ताकि इस गति को बनाए रखा जा सके।

डॉ. सिंह ने राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन (एएनआरएफ) के बजट में 50,000 करोड़ रुपये का उल्लेख करते हुए कहा कि यह ज्ञान-संचालित समाज के निर्माण में एक परिवर्तनकारी कदम है, जो उद्योग-अकादमिक सहयोग को प्रोत्साहित करेगा।

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