नई दिल्ली: केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने बुधवार को कांग्रेस नेता सोनिया गांधी पर तीखा हमला करते हुए कहा कि भ्रष्टाचार और शासन की कमी, देश के शैक्षिक अतीत की प्रमुख विशेषताएं थीं। उन्होंने यह भी कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020, इस अपमानजनक अतीत से एक निर्णायक विराम का प्रतिनिधित्व करती है।
द हिंदू अखबार में प्रकाशित अपने लेख को धर्मेंद्र प्रधान ने अपने एक्स हैंडल पर साझा करते हुए कहा कि एनईपी 2020 केवल एक शिक्षा सुधार नहीं है, बल्कि यह “बौद्धिक उपनिवेशवाद से मुक्ति है, जिसका भारत लंबे समय से इंतजार कर रहा था।” उन्होंने इसे लोगों की, लोगों द्वारा और लोगों के भविष्य के लिए नीति बताया।
सोनिया गांधी ने हाल ही में केंद्र की मोदी सरकार पर आरोप लगाया था कि वह शिक्षा के क्षेत्र में एक ऐसे एजेंडे का पालन कर रही है, जो “नुकसानदेह नतीजों की ओर ले जा रहा है।” कांग्रेस नेता ने यह भी कहा कि भारतीय शिक्षा को तीन सी का सामना करना पड़ रहा है – केंद्रीकरण, व्यावसायीकरण और सांप्रदायिकरण।
इसी लेख में सोनिया गांधी के तर्कों का खंडन करते हुए मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहा कि वह भारत के शैक्षिक परिवर्तन की सच्ची तस्वीर प्रस्तुत कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह तर्क दिया गया कि मोदी सरकार के पिछले 11 वर्षों में शिक्षा प्रणाली अपने रास्ते से भटक गई है, लेकिन सच्चाई इससे काफी अलग है। उन्होंने बताया कि पिछली सरकारों द्वारा शिक्षा प्रणाली की उपेक्षा की गई थी, और यह अब एक अप्रिय सचाई है जिसे देश ने अनुभव किया है।
धर्मेंद्र प्रधान ने आगे कहा कि जब दुनिया ने शिक्षा को एक नए दृष्टिकोण से देखने का प्रयास किया, तब भारत का शैक्षिक ढांचा पिछड़ गया, क्योंकि भारत ने 1986 में आखिरी बार प्रमुख नीतिगत बदलाव देखा था, जिसे 1992 में मामूली रूप से संशोधित किया गया था। उन्होंने इसे औपनिवेशिक मानसिकता को कायम रखने की कोशिश बताया, जो तकनीकी बदलावों से देश को बचाने की कोशिश कर रही थी।
केंद्रीय मंत्री ने पिछली शिक्षा नीति के बारे में कहा कि भ्रष्टाचार और शासन की कमी, देश के शैक्षिक अतीत की पहचान बन गई थी। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि “सार्वजनिक विश्वविद्यालयों को धन की कमी का सामना करना पड़ा और कई निजी संस्थान डिग्री मिलों में बदल गए थे।” 2009 में डीम्ड विश्वविद्यालय घोटाले का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि 44 निजी संस्थानों को बिना उचित मूल्यांकन के विश्वविद्यालय का दर्जा दे दिया गया था, जिनमें से कई वित्तीय अनियमितताओं के दोषी पाए गए थे।
धर्मेंद्र प्रधान ने यह भी कहा कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) और अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (AICTE) जैसी संस्थाएं, उत्कृष्टता को बढ़ावा देने के बजाय, नियंत्रण के साधन बन गई थीं, और विश्वविद्यालयों में नेतृत्व के लिए नियुक्तियां राजनीतिक निष्ठा पर आधारित थीं।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का बचाव करते हुए मंत्री ने कहा कि यह नीति भारत के शैक्षिक अतीत से एक निर्णायक विराम है और भारत के नीति इतिहास में सबसे व्यापक लोकतांत्रिक परामर्श का परिणाम है। उन्होंने कहा, “एनईपी 2020 लोगों की, लोगों द्वारा और लोगों के भविष्य के लिए नीति है, जो पहुंच, समानता, गुणवत्ता, सामर्थ्य और जवाबदेही के पांच स्तंभों पर आधारित है।”
धर्मेंद्र प्रधान ने महिला सशक्तिकरण को नीति का केंद्र बताते हुए आंकड़ों के माध्यम से सिद्ध किया कि 2014 के बाद से महिलाओं की भागीदारी में जबरदस्त वृद्धि हुई है। उच्च शिक्षा में महिलाओं के पीएचडी नामांकन में 135 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, और उच्च शिक्षा में महिलाओं की हिस्सेदारी 43 प्रतिशत तक पहुंच चुकी है।
उन्होंने यह भी बताया कि सरकारी स्कूलों को आधुनिक बुनियादी ढांचे और सहायक प्रणालियों के साथ उन्नत किया जा रहा है। उन्होंने एनईपी 2020 में भविष्य की शिक्षा को लेकर कई महत्वपूर्ण पहलें की चर्चा की, जैसे मिडिल स्कूल से कोडिंग और ग्रामीण क्षेत्रों में नवाचार केंद्रों का निर्माण।
प्रधान ने कहा कि एनईपी 2020 के माध्यम से भारत की शिक्षा प्रणाली अब औपनिवेशिक छाया और वैचारिक कैद से मुक्त हो चुकी है, और यह भारत को विकसित देशों की श्रेणी में लाने के लिए तैयार है।
उन्होंने लेख के अंत में कहा, “यह महज शिक्षा सुधार नहीं है। यह बौद्धिक उपनिवेशवाद से मुक्ति है, जो भारत को एक विकसित राष्ट्र बनने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।”