कुंभ मेला सनातन हिंदू धर्म का सबसे बड़ा और प्राचीन धार्मिक आयोजन है। इसका इतिहास 800 साल से भी पुराना है और इसे आदि गुरू शंकराचार्य ने शुरू किया था। समय के साथ कुंभ मेला भारतीय धर्म और संस्कृति का अभिन्न हिस्सा बन गया। यह आयोजन कभी भी नहीं रुक सका, चाहे भारत पर खिलजी, तुगलक, मुगल या अंग्रेज शासन हो, कुंभ मेला हर बार पूरे विधि-विधान से आयोजित होता रहा। हालांकि, इतिहास में एक ऐसा भी समय था जब कुंभ मेला स्थल पर बमबारी कर इसे नष्ट कर दिया गया था।
अंग्रेज कर्नल नील ने कुंभ मेला स्थल को निशाना बनाया
यह घटना उस समय की है जब भारत पर ब्रिटिश शासन था और देश में आजादी के लिए विद्रोह शुरू हो चुका था। 1857 की क्रांति के दौरान कुंभ मेला से जुड़े प्रयागवाल समुदाय के लोग अंग्रेजी शासन के खिलाफ विद्रोहियों के साथ थे। औपनिवेशिक सरकार ने प्रयागवालों पर इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में अशांति फैलाने और आंशिक रूप से 1857 के विद्रोह को भड़काने का आरोप लगाया।
विद्रोह के दौरान, कर्नल नील ने प्रयागवाल समुदाय के निवास स्थान को निशाना बनाते हुए कुंभ मेला स्थल पर बमबारी की, जिससे उस क्षेत्र को नष्ट कर दिया गया। 1857 के विद्रोह के बाद भी प्रयागवाल समुदाय और कुंभ मेले के तीर्थयात्रियों ने अंग्रेजी शासन के खिलाफ अपनी आवाज उठाना जारी रखा। कुंभ मेला भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में 1947 तक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा।
कुंभ का पौराणिक इतिहास
कुंभ मेले का संबंध पौराणिक कथाओं से है। मान्यता है कि समुद्र मंथन से निकले अमृत की चार बूंदें देवताओं और असुरों के बीच झड़प के दौरान धरती पर गिरीं। इन बूंदों के गिरने से जिन स्थानों पर अमृत पड़ा, वहां हर 6 साल पर अर्धकुंभ और हर 12 साल पर महाकुंभ का आयोजन होता है। ये चार स्थान हैं प्रयागराज, नासिक, हरिद्वार, और उज्जैन।
2025 में प्रयागराज में होगा महाकुंभ मेला
अगला महाकुंभ मेला 2025 में प्रयागराज में 13 जनवरी 2025 से 26 फरवरी 2025 तक आयोजित किया जाएगा। यह मेला विश्वभर के हिंदू तीर्थयात्रियों के लिए एक महत्वपूर्ण धार्मिक आयोजन होता है, जिसमें लाखों लोग गंगा में आस्था की डुबकी लगाते हैं।