नई दिल्ली:विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के सचिव ने संयुक्त राष्ट्र वैश्विक एसटीआई फोरम 2023 के कम्युनिटी रेजिलिएंस रिसोर्स सेंटर्स (सीआरआरसी) विषय पर सह-कार्यक्रम में भारत में कोविड के बाद सामाजिक-आर्थिक सुधार में मदद के लिए एक टिकाऊ, सशक्त समाज बनाने के लिए देशों के बीच ज्ञान, विज्ञान और प्रौद्योगिकी को साझा करने के लिए एक तंत्र विकसित करने के महत्व को रेखांकित किया।
डीएसटी और संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित सह-कार्यक्रम में हाइड्रोजन आधारित ऊर्जा, नवीन टिकाऊ ऊर्जा प्रणालियों के साथ-साथ खाद्य सुरक्षा के मुद्दों के समाधान के तरीकों के ज्ञान को साझा करने पर जोर देते हुए डॉ. चंद्रशेखर ने एक समग्र दृष्टिकोण के महत्व पर बल दिया जिससे एआई और अन्य नवीन प्रौद्योगिकियों का उपयोग नई एवं उभरती समस्याओं जैसे बदलती जलवायु, ग्रीन हाउस गैस (जीएचजी), महामारी और अन्य नई बीमारियों से निपटने के लिए करके एक टिकाऊ धरती को विकसित करने के लिए किया जा सकता है।
हम सभी लोग एक अनिश्चितता से भरी दुनिया में रह रहे हैं। मानव जाति ने बीमारियों, युद्धों, जलवायु परिवर्तन की घटनाओं और आपदाओं का सामना किया है। कोविड-19 महामारी ने लगभग हर देश में आर्थिक व मानव विकास को प्रभावित किया और लगातार कोविड के कई रूप सामने आते रहते हैं। बढ़ती गरीबी, खाद्य सुरक्षा, मजबूरीवश विस्थापन, भू-राजनीति और जटिल असमानताओं के कारण पहली बार वैश्विक मानव विकास सूचकांक में लगातार दो वर्षों तक गिरावट आई। डीएसटी सचिव ने कहा कि इसने टिकाऊ विकास और पेरिस समझौते के लिए 2030 एजेंडे को अपनाने के ठीक बाद के समय में दुनिया को वापस पहुंचा दिया।
डॉ. चंद्रशेखर ने बताया कि मानव जाति के लिए अनिश्चितता भरी स्थितियां नई नहीं हैं और कई समाजों ने इन परेशान करने वाली वास्तविकताओं को स्वीकार किया और इनसे उभरने के तरीके भी खोजे हैं। उन्होंने कहा कि सहनशीलता सिर्फ ठोस बुनियादी ढांचे और बिल्डिंग कोड के बारे में नहीं है– इसमें एक मजबूत सामाजिक और सामुदायिक घटक भी शामिल है, और सशक्त समुदाय अपने सदस्यों को अनिश्चितता की स्थितियों को आत्मसात करने और उनके अनुरूप तैयार होने के लिए सशक्त बनाता है।
डीएसटी के सचिव ने बताया कि विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार इस तरह की सामुदायिक सशक्तता के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। विज्ञान के विविध क्षेत्र नया ज्ञान को सृजित करते हैं जो सामुदायिक सशक्तता लाने के लिए प्रक्रियाओं की समझ में सुधार करता है। नया बाजार नई प्रौद्योगिकियां से लैस आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय स्थिरता बढ़ाने के लिए नए अवसर अवसर पैदा करता है और नवाचार गैर-पारंपरिक सक्रियकों को उनके प्रयासों को संगठित करने व सामुदायिक सशक्तता के लिए अपने संसाधनों को एकजुट करने के लिए एक साथ ला सकता है।
उन्होंने रेखांकित किया कि कोविड महामारी के चरम पर पहुंचने के दौरान विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग ने समुदायों की विज्ञान प्रौद्योगिकी और नवाचार (एसटीआई) क्षमताओं के निर्माण के लिए कम्युनिटी रेजिलिएंस रिसोर्स सेंटर्स (सीआरआरसी) स्थापित करने के लिए एक पहल की ताकि महामारी और महामारी के बाद सामाजिक-आर्थिक स्थिति तेजी से बेहतर हो सके। डॉ. चंद्रशेखर ने सह-कार्यक्रम में बताया कि स्थायी आजीविक के लिए सामुदायिक सशक्तता को एक एकीकृत करने पर ध्यान केंद्रित किया गया।
डीएसटी और यूएनडीपी द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित सह-कार्यक्रम में यूएनडीपी इंडिया की रेजिडेंट प्रतिनिधि सुश्री शोको नोडा ने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और आदान-प्रदान गतिविधियों के विभिन्न रूपों के माध्यम से कम्युनिटी रेजिलिएंस रिसोर्स सेंटर्स विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी से जुड़े प्रयासों और आवश्यक कौशल के साथ आजीविका पर केंद्रित परियोजनाओं को लागू करने में मदद करेंगे ताकि समुदायों को विकल्प चुनने का अवसर मिल सके और एक टिकाऊ भविष्य के लिए के लिए अनिश्चितता भरी स्थितियों का प्रबंधन कर सकें। वे द्विपक्षीय और बहुपक्षीय साझेदारी की सुविधा प्रदान करेंगे जो विभिन्न प्रकार के प्रभावी और समावेशी विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं सक्षम समुदायों के लिए नवाचार को बढ़ावा देने में मदद करते हैं, व्यावहारिक और उन्नत विज्ञान, प्रौद्योगिकी व नवाचार-आधारित सामुदायिक सशक्तता का मॉडल, अनुभव, सर्वोत्तम कार्यप्रणालियों और सफल उदाहरणों को साझा करते हैं।
वहीं विज्ञान एंव प्रौद्योगिकी (डीएसटी) की सीड डिवीजन की प्रमुख डॉ. देबप्रिया दत्ता ने उन तरीकों पर विचार-विमर्श किया जिसमें डीएसटी और यूएनडीपी भविष्य में सीआरआरसी पर काम कर सकते हैं। डीएसटी के वैज्ञानिक डॉ. कोंगा गोपीकृष्ण ने कम्युनिटी रेजिलिएंस रिसोर्स सेंटर्स (सीआरआरसी) की अवधारणा के बारे में विस्तार से बताया। अमृता विद्यापीठम की डॉ. मनीषा सुधीर, पेट्रोलियम और ऊर्जा अध्ययन विश्वविद्यालय (यूपीईएस), डॉ. नीलू आहूजा और भारतीय वन्यजीव संस्थान डॉ. रुचि बडोला ने सीआरआरसीएस के अपने अनुभव साझा किए।
दिनभर चले इस सह-कार्यक्रम में भारत और दुनिया के बीच भविष्य में सहयोग के लिए एक खाका तैयार करने पर विचार-विमर्श किया गया जो समुदाय-आधारित तकनीकी समाधानों और स्थानीय सशक्तता निर्माण के लिए किफायती नवाचारों को संभव बना सकता है और वैज्ञानिक उपकरणों के विकास के लिए सहयोगी वैश्विक अनुसंधान मंचों को आगे बढ़ा सकता है जो योगदान दे सकते हैं।