यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल के रूप में ‘विश्व भारती’ को शामिल करना वास्तव में एक महान व्यक्तित्व के लिए एक श्रद्धांजलि है:मीनाक्षी लेखी

नई दिल्ली: इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र ने श्री गुरु गोबिंद सिंह ट्रीसेंटरी युनिर्वसिटी और संरचना फाउंडेशन के सहयोग से 12 मई को नई दिल्ली में रवींद्र जयंती समारोह का आयोजन किया।

इस अवसर पर मीनाक्षी लेखी, संस्कृति एवं विदेश राज्य मंत्री ने इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र द्वारा विकसित ‘विज्ञान वैभव’ पोर्टल का शुभारंभ किया। विज्ञान वैभव 75 भारतीय वैज्ञानिकों को समर्पित है। इस अवसर पर अतिथि वक्ता के रूप में विदेश मंत्रालय की पूर्व सचिव रीवा गांगुली दास भी शामिल हुई। इस अवसर पर उपस्थित अन्य अतिथि लोगों में आईसीसीआर के पूर्व क्षेत्रीय निदेशक गौतम डे, बंगाली फिल्म उद्योग के प्रख्यात अभिनेता रुद्रनील घोष और एसजीटी विश्वविद्यालय के प्रोफेसर ओपी कालरा भी शामिल हुए। इस अवसर पर आईजीएनसीए के सदस्य सचिव, डॉ. सच्चिदानंद जोशी, आईजीएनसीए के डीन एकेडमिक एवं एचओडी सीआईएल प्रोफेसर प्रतापानंद झा भी उपस्थित हुए।

मीनाक्षी लेखी ने श्रोताओं को संबोधित किया और कार्यक्रम में उपस्थित होने पर प्रसन्नता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि गुरुदेव रवींद्र नाथ टैगोर के विचारों और दर्शन ने इतिहास के अंधेरे युग से उजाले की ओर भारत का मार्गदर्शन किया। मीनाक्षी लेखी ने कहा कि यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल के रूप में ‘विश्व भारती’ को शामिल करना वास्तव में एक महान व्यक्तित्व के लिए एक श्रद्धांजलि है, क्योंकि इस विश्वविद्यालय में न केवल इमारतें या भित्ति चित्र शामिल हैं, बल्कि विचार और दर्शन भी शामिल हैं, जो हम भारतीयों को चरित्र और मूल्यों के साथ जोड़ता है। पोर्टल का उद्घाटन करते हुए उन्होंने कहा कि हम जो कुछ भी करते हैं वह बिना सबूत के नहीं होता, बल्कि वैज्ञानिक सोच के साथ काम करने का गौरव हमसे औपनिवेशिक काल ने छीन लिया। संस्कृति एवं विज्ञान का मिलन,रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा प्रदान किया गया था और उन आदर्शों को विश्व भारती विश्वविद्यालय द्वारा आगे बढ़ाया गया। उन्होंने कहा कि तक्षशिला की भावना और इसकी शिक्षा श्री गुरुदेव द्वारा हमें प्रदान की गई और उसे विश्व भारती के माध्यम से आगे बढ़ाया गया और इसलिए यह भी कहा जा सकता है कि ज्ञान की कोई सीमा नहीं होती है। इस संदर्भ में उन्होंने यह भी कहा कि शिक्षा खुद को बेहतर बनाने के लिए है और चरित्र निर्माण रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा हमें प्रदान की गई, जो कि एक ज्ञान प्रणाली का हिस्सा है। उन्होंने कहा कि भारतीय और भारत उस स्थिति में वापस आ रहे हैं जो हम पहले थे और हमें कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी और अपने चरित्र पर वापस जाना होगा और यही गुरुदेव के लिए हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी। भारत में हमेशा विज्ञान की संस्कृति रही है और महिलाओं ने इसमें समान रूप से योगदान दिया है। उन्होंने आगे कहा कि भारत में महिलाओं को उनका काम करने से कभी नहीं रोका गया जो वह करना चाहती थीं, यही कारण है कि ‘विज्ञान वैभव’ पोर्टल समान संख्या में महिलाओं और पुरुषों के योगदान की पहचान करता है। लेखी ने टैगोर की कविता ए प्रेयर फॉर इंडिया का पाठ करते हुए अपना भाषण समाप्त किया, “जहां मन निडर हो और सिर ऊंचा हो… मेरे पिता, मेरे देश, इस स्वतंत्रता के स्वर्ग में जागें।”

प्रोफेसर ओ.पी. कालरा ने श्रोताओं को संबोधित करते हुए, गुरुदेव और अल्बर्ट आइंस्टीन की एक तस्वीर का हवाला देते हुए संस्कृति और विज्ञान के मिश्रण के महत्व पर बल दिया और कहा कि हम दुनिया के बाकी हिस्सों से चिकित्सा और अन्य विज्ञान के क्षेत्र में बहुत आगे हैं।

रीवा गांगुली दास ने कहा, “श्री टैगोर की शिक्षा आज भी मौजूद है और यह उनके विचारों और आदर्शों के कारण है।” उन्होंने कहा कि रवींद्रनाथ टैगोर ने स्पेनिश दुनिया पर एक बड़ा प्रभाव छोड़ा क्योंकि गीतांजलि का स्पेनिश में अनुवाद किया गया है और चीन में भी ऐसी बात शामिल है। रीवा दास ने कहा कि रवींद्रनाथ टैगोर सीमाओं से परे हैं और यही गुरुदेव टैगोर का सार है। बंगाली फिल्म उद्योग के प्रख्यात अभिनेता रुद्रनील घोष ने बंगाली फिल्मों में गुरुदेव टैगोर के विरासत की बात की। उन्होंने कहा कि गुरुदेव टैगोर के लेखन में सभी सामाजिक और समकालीन मुद्दों को दर्शाया गया है और यही कारण है कि फिल्म निर्माता टैगोर के विचारों और दर्शन को सम्मान देने के लिए उन पर फिल्में बनाते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि टैगोर इस देश के लोगों के दिलों में बसते हैं और बंगाली फिल्मों में उनका प्रभाव हमेशा ही कायम रहेगा। इससे पहले, कार्यक्रम को संबोधित करते हुए, गौतम डे ने रवींद्रनाथ टैगोर के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की और कहा कि समकालीन समय में उनके दर्शन और विचार बहुत ही महत्वपूर्ण हैं।

डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने अपने स्वागत भाषण में कहा कि भारतीय संस्कृति में, गुरुदेव टैगोर लोगों के मन में शामिल है और उनके आदर्शों और महान विचारों ने हमारे राष्ट्र निर्माण में बहुत बड़ा योगदान दिया है। उन्होंने कहा कि रवींद्रनाथ टैगोर का दर्शन भारतीय संस्कृति को बढ़ावा देता है। ‘विज्ञान वैभव’ के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा कि भारतीय दर्शन में अनुभवनात्मक सोच और तर्क के बिना कुछ भी संभव नहीं है और ‘विज्ञान वैभव’ उन पुरुषों और महिलाओं के लिए एक श्रद्धांजलि है जिन्होंने विज्ञान के क्षेत्र में समान रूप से अपना योगदान दिया है। प्रतापानंद झा ने ‘विज्ञान वैभव’ के बारे में कहा कि भारत में वैज्ञानिक ज्ञान की एक लंबी परंपरा रही है। उन्होंने इस विषय पर विस्तार से बात करते हुए कहा कि विज्ञान के क्षेत्र में स्वतंत्र होने वाले सपनों की प्राप्ति के लिए ‘विज्ञान वैभव’ देश के विज्ञान की सच्ची अवधारणा को लोगों तक पहुंचाने की दिशा मैं काम करेगा। उन्होंने यह भी कहा कि यह एक सामूहिक प्रयास है और इसके शुरारंभ को ‘कला वैभव’ के विस्तार के रूप में देखा जा सकता है, जिसे हाल ही में आईजीएनसीए द्वारा शुभारंभ किया गया है।

इस अवसर पर सुलगना बनर्जी और पायल घोष द्वारा गाया गया रवींद्र संगीत और प्रायोजित समूह द्वारा एक सांस्कृतिक प्रस्तुतियां भी प्रदान की गई। आईजीएनसीए के पुरालेखपाल प्रोफेसर संजय झा द्वारा इस कार्यक्रम का अंत मे औपचारिक धन्यवाद ज्ञापन के साथ समापन किया गया।

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