वैश्विक स्तर पर सोचें लेकिन स्थानीय स्तर पर कार्य करें- श्री के.एन. गोविंदाचार्य।

अनिल राज के साथ मंटु तिवारी की रिपोर्ट ।

 

एमिटी विश्वविद्यालय हरियाणा में प्रकृति केंद्रित विकास को लेकर एक राष्ट्रिय संगोष्ठी का आयोजन किया गया । यह संगोष्ठी भारत की प्राचीन ज्ञान परम्परा में निहित पर्यावरण विषय पर केंद्रित था। इस संगोष्ठी में समाज के विभिन्न क्षेत्रों   के  प्रतिष्ठित पर्यावरण  विशेषज्ञ, सामाजिक कार्यकर्त्ता एवं विश्वविद्यालय के शिक्षणगण समेत हजारों की संख्यां में छात्र- छात्राएं  उपस्थित रहे ।

इस नेशनल सेमिनार में  श्री के.एन. गोविंदाचार्य, डॉ. ओ.पी. पांडे, श्री जीवकांत झा, डॉ. धर्मेंद्र दुबे  आदि जैसे महान पर्यावरणविदों की गरिमामयी उपस्थिति रही। यह सेमिनार स्वस्थ जीवन के उद्देश्य से  पर्यावरण की रक्षा के लिए चल रहे प्रयासों में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुआ।

कार्यक्रम अध्यक्ष प्रो संजय. के. झा, निदेशक (लिबरल आर्ट्स) ने सम्मानित गणमान्य अतिथियों का स्वागत किया और पर्यावरण सहित जीवन के सभी क्षेत्रों में भारतीय ज्ञान प्रणाली के क्रियान्वयन पर जोर दिया । विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. पी.बी. शर्मा ने सभा को संबोधित किया और भारतीय ज्ञान प्रणाली एवं  पर्यावरण को लेकर लोगों में एक नई चेतना का संचार किया। पर्यावरण कार्यकर्ता, श्री जीव कांत झा ने जल एवं नदियों  के महत्व एवं  उनके संरक्षण पर लोगों का ध्यान आकृष्ट कराया । डॉ. ओ. पी. पांडे ने मन और पृथ्वी के साथ विज्ञान और प्रौद्योगिकी के एकात्मता पर चर्चा की। उन्होंने पर्यावरण में बदलाव लाने के लिए सामाजिक-सांस्कृतिक, राजनीतिक और आर्थिक तथ्यों  पर भी बल दिया।

सेमिनार के मुख्य अतिथि भारतीय राजनीति के महान पुरोधा श्री. के.एन. गोविंदाचार्य जी ने दर्शकों को पर्यावरण चेतना और प्रकृति के प्रति समाज के दायित्व से अवगत कराया। उन्होंने यह भी कहा कि हम सभी को एकजुट होकर “वैश्विक स्तर पर सोचना चाहिए और स्थानीय स्तर पर कार्य करना चाहिए।” उन्होंने ये भी कहा कि जल, जमीन और  जंगल के साथ जन का समन्वय होना आवश्यक है तभी हम पर्यावरण का संरक्षण कर पाएंगे।

सेमिनार के प्रथम सत्र डॉ. सुप्रिया संजू के धन्यवाद ज्ञापन के साथ संपन्न हुआ  तथा सेमिनार के दूसरे सत्र में विभिन्न विश्वविद्यालयों  के शोधार्थियों ने  पर्यावरण पर अपने शोध पत्र प्रस्तुत किये। ऑनलइन और ऑफलाइन  माध्यम से आयोजित यह  संगोष्ठी अत्यधिक उपयोगी एवं ज्ञानवर्धक सिद्ध हुआ क्योकि इसमें वर्तमान और भविष्य की पर्यावरणीय चुनौतियों का सामना करने के विभिन्न आयामों पर उत्कृष्ट सुझाव प्रस्तुत किये गए।

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