अलीगढ़ – उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सोमवार को उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में स्थित राजा महेंद्र प्रताप सिंह राज्य विश्वविद्यालय के प्रथम दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि “दुर्भाग्य है कि स्वाधीनता की लड़ाई में योगदान देने वाले महान नायकों की प्रेरक कहानियों का हमारी पाठ्यपुस्तकों में अब तक कोई उल्लेख नहीं है। यह दर्दनाक है कि स्वतंत्रता के इतिहास के साथ छेड़छाड़ की गई और वंचितों को इसका श्रेय नहीं दिया गया।”
उन्होेंने शहीदों को याद करते हुए कविता उद्धृत की:
“शहीदों की चिताओं पर जुड़ेंगे हर बरस मेले।
वतन पर मरनेवालों का यही बाक़ी निशाँ होगा॥
कभी वह दिन भी आएगा जब अपना राज देखेंगे।
जब अपनी ही ज़मीं होगी और अपना आसमाँ होगा॥”
उपराष्ट्रपति ने कहा कि युवाओं को स्वतंत्रता संग्राम के वास्तविक नायकों के बारे में जागरूक करना हमारा परम कर्तव्य है। उन्होंने खुशी जताई कि हाल के दिनों में देश भर में गुमनाम नायकों का जोरदार जश्न मनाया जा रहा है।
धनखड़ ने राजा महेंद्र प्रताप सिंह के योगदान पर प्रकाश डालते हुए बताया कि 1915 में उन्होंने काबुल में भारत की पहली आस्थायी सरकार की स्थापना की थी। उन्होंने कहा कि “सभ्यताएँ और संस्थाएँ अपने नायकों से जीवित रहती हैं। राजा महेंद्र प्रताप सिंह स्वतंत्रता संग्राम के एक नायक थे, जिन्हें हमारे स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में जगह दी जानी चाहिए थी।”
उन्होेंने संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर और भारत रत्न एवं पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को भी याद किया, यह कहते हुए कि “हमें अपने नायकों को पहचानने में इतना समय क्यों लगा? डॉ. अंबेडकर को सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से देर से दिया गया। 1990 में डॉ. अंबेडकर, 2023 में चौधरी चरण सिंह और कर्पूरी ठाकुर जी को सम्मानित किया गया।”
उपराष्ट्रपति ने अंत में कहा कि देश में प्रौद्योगिकी ने अत्यंत पारदर्शी और जवाबदेह शासन को सुनिश्चित किया है, जो हमारे युवा पीढ़ी के विकास में मददगार साबित होगा।