केंद्र सरकार इस महीने भारतीय नौसेना की ताकत को और बढ़ाने के लिए एक अहम कदम उठाने वाली है। अप्रैल के अंत तक मोदी सरकार राफेल-मैरीटाइम स्ट्राइक फाइटर्स (Rafale-Maritime strike fighters) की खरीद को हरी झंडी देने के लिए पूरी तरह तैयार है। इस सौदे की कीमत लगभग 7.6 बिलियन डॉलर (करीब 56,000 करोड़ रुपये) होगी।
राफेल-मैरीटाइम फाइटर जेट सौदा
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, इस सौदे को इस महीने के अंत में कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी (CCS) के समक्ष रखा जाएगा। इसके साथ ही, तीन अतिरिक्त डीजल इलेक्ट्रिक पनडुब्बियों के लिए भी सरकार की मंजूरी मिल सकती है। राफेल-एम लड़ाकू विमानों का इस्तेमाल भारतीय नौसेना के दो प्रमुख विमानवाहक पोतों—आईएनएस विक्रांत और आईएनएस विक्रमादित्य—पर किया जाएगा, ताकि समुद्र में भारतीय नौसेना की ताकत को और बढ़ाया जा सके।
इसके अलावा, अतिरिक्त पनडुब्बियां हिंद महासागर क्षेत्र (Indian Ocean Region – IOR) में चीन की लगातार बढ़ती चुनौती का मुकाबला करने के लिए भारत की समुद्री सुरक्षा को और मजबूती देंगी।
राफेल-मैरीटाइम फाइटर जेट की विशेषताएं
भारत पहले ही 36 राफेल लड़ाकू विमानों का संचालन कर रहा है, और अब ताजा सौदा राफेल के समुद्री संस्करण (राफेल-एम) के लिए है। यह विमानों को भारतीय नौसेना के दो विमानवाहक पोतों पर तैनात करने के लिए खरीदा जाएगा। राफेल-एम विमानों का निर्माण फ्रांस की डसॉल्ट एविएशन कंपनी द्वारा किया जाता है, और इसे भारतीय नौसेना की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए डिजाइन किया गया है।
राफेल-एम विमान उन्नत एवियोनिक्स, एईएसए रडार, और मल्टी रोल फाइटर जेट क्षमता से लैस है। यह एक सिंगल सीट वाला 4+ पीढ़ी का लड़ाकू विमान है, जो समुद्र में लंबी दूरी तक हमला करने में सक्षम है।
राफेल-एम में लगे उन्नत हथियार
राफेल-एम विमानों को मेटियोर, मल्टी-मिशन एयर-टू-एयर मिसाइल सिस्टम (MICA), SCALP मिसाइलों और EXOCET एंटी-शिप हथियारों जैसे उन्नत हथियारों से लैस किया गया है, जिससे इसकी मारक क्षमता को और बढ़ाया गया है।
सिस्टम और टेक्नोलॉजी
राफेल-एम को विमानवाहक पोत से संचालित किया जाएगा, और यह CATOBAR (कैटापुल्ट असिस्टेड टेक-ऑफ बैरियर अरेस्टेड रिकवरी) और STOBAR (शॉर्ट टेक-ऑफ, बैरियर अरेस्टेड रिकवरी) जैसे उन्नत टेक्नोलॉजिकल सिस्टम से लैस होगा, जो विमान को हवा में उड़ान भरने और फिर से सुरक्षित रूप से उतरने में मदद करेंगे।
इस सौदे के तहत भारतीय नौसेना को अपनी समुद्री ताकत को और भी बढ़ाने का अवसर मिलेगा, खासकर हिंद महासागर क्षेत्र में बढ़ती सुरक्षा जरूरतों और वैश्विक समुद्री चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए।