बेगूसराय.जिले में रबी और खरीफ सीजन की फसलों के साथ अब किसान गर्मी में तिल भी उगा रहे हैं. इससे किसानों को न सिर्फ अच्छी आमदनी होगी बल्कि नीलगाय से होने वाली परेशानी से भी निजात मिल जाएगा. नीलगाय तिल खाना पसंद करती है, इसलिए किसानों के फसल को नुकसान होने की संभावना भी नहीं है. कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि तिल की फसल दोहरी फसल प्रणाली के लिए उपयुक्त है, क्योंकि यह 85 से 90 दिनों में हीं तैयार हो जाता है. किसान अपने उपजाऊ जमीन पर तिल की खेती कर सकते हैं. जिले के सबसे ज्यादा परती भूमि कावर झील इलाका है, जहां इन दिनों पानी की संकट रहती है. इस इलाके के किसान भी तिल की खेती कर सकते हैं. तिल की खेती करने में पानी की भी कम जरूरत पड़ती है.
खोदावंदपुर कृषि विज्ञान केंद्र के कृषि वैज्ञानिक डॉ. रामपाल ने बताया जहां पटवन की समस्या है और नीलगाय फसल को नष्ट कर देती है या फिर जिस खेत में जंगली घास फसलों को बर्बाद करता हो तो उस खेत में तिल की खेती की जा सकती है. जुलाई के महीने में किसानों के लिए तिल की खेती करना फायदेमंद है. बलुई और दोमट मिट्टी में पर्याप्त नमी होने पर फसल अच्छी होती है. वहीं तापमान की बात की जाए तो बेगूसराय जिले का तापमान खेती के लिए प्रयुक्त है. अधिक तापमान इस फसल को नुकसान नहीं पहुंचा पाएगा. वहीं जब 75 पीसदी पत्तियां और तने पीले हो जाती है तो इसे कटाई के लिए उपयुक्त माना जाता है. कटाई में लगभग 80 से 95 दिन लगते हैं. जल्दी कटाई तिल के बीज को पतला और बारीक रखकर उनकी उपज कम कर देती है. उपज आम तौर पर प्रति हेक्टेयर 6 से 7 क्विंटल होती है.
गूसराय जिले के कावर और दियारा इलाके में करीब 50 एकड़ से ज्यादा भूमि पर पानी के कारण किसान जून, जुलाई और अगस्त तक फसल नहीं लगा पाते हैं. इन खेतों को परती छोड़ने के बदले यहां तिल की खेती की जा सकती है. किसान अगर तिल का बीज लेना चाह रहे हैं तो जिला मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर कृषि विज्ञान केंद्र खोदावंदपुर में सुबह 10 बजे से शाम 4 बजे तक आकर बीज ले सकते हैं और इसके लिए पूसा कृषि विश्वविद्यालय द्वारा जारी मामूली शुल्क देना होगा.