नई दिल्ली: सरकार ने कहा है कि वह उत्पादोन्मुख परिणामों के लिए भारतीय पेटेंट अधिनियम को और अधिक सरलीकृत एवं अनुसंधान के अनुकूल बनाने पर विचार कर रही है।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, दिल्ली में भारत की जी 20 अध्यक्षता (प्रेसीडेंसी) के तत्वावधान में भारतीय उद्योग परिसंघ (कॉन्फ़ेडरेशन ऑफ़ इंडियन इंडस्ट्रीज – सीआईआई) द्वारा “विज्ञान, अनुसंधान एवं नवाचार सहभागिता को समर्थन (फोस्टरिंग साइंस, रिसर्च एंड इनोवेशन पार्टनरशिप) ‘ शीर्षक से आयोजित एक वैश्विक विज्ञान, अनुसंधान एवं नवाचार शिखर सम्मेलन (ग्लोबल साइंस, रिसर्च एंड इनोवेशन समिट) को संबोधित करते हुए, डॉ. अखिलेश गुप्ता, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार के वरिष्ठ सलाहकार डॉ. अखिलेश गुप्ता ने कहा कि जहां एक ओर भारत में 1000 से अधिक विश्वविद्यालय होने के बावजूद प्रति वर्ष औसतन 23,000 पेटेंट ही दिए जाते हैं, वहीं चीन में यह संख्या 5 लाख से अधिक है। उन्होंने कहा कि भारत में पेटेंट के लिए आवेदन करने और इसे उसके तार्किक निष्कर्ष तक ले जाने की संस्कृति का फिलहाल अभाव है।
डॉ. गुप्ता, जो विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड (एसईआरबी) के सचिव भी हैं, ने कहा कि भारत में पेटेंट दाखिल करने और पेटेंट की स्वीकृति देने की समय अवधि 3 वर्ष है, जबकि वैश्विक औसत दो वर्ष है।
नई सिक्षा नीति (एनईपी)-2020 के अनुसार, देश में अनुसंधान की सभी वित्त पोषण एजेंसियां हमारे देश में गुणवत्तापूर्ण अनुसंधान को उत्प्रेरित करने के उद्देश्य से स्वयं का एक इकाई – राष्ट्रीय अनुसंधान संस्थान (एनआरएफ) में विलय कर देंगी। इसमें बुनियादी अनुसंधान और उच्च गुणवत्ता वाले नवाचार के दोहरे उद्देश्य होंगे ।
भारत में अनुसंधान एवं विकास पर खर्च किए जा रहे लगभग .69 प्रतिशत बजट का उल्लेख करते हुए, डॉ. गुप्ता ने कहा, निजी क्षेत्र को दोहरे लाभ (विन-विन) अर्जन के लिए व्यवस्था और समर्थन हेतु उच्च अनुसंधान के बराबर आवंटन के साथ आगे आना करना चाहिए।
उन्होंने कहा कि पिछले महीने केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 2023-24 से 2030-31 तक कुल 6003.65 करोड़ रुपये की लागत से राष्ट्रीय क्वांटम मिशन (एनक्यूएम) को मंजूरी दी थी, जिसका लक्ष्य वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान एवं विकास को बढाना और क्वांटम टेक्नोलॉजी (क्यूटी) में एक जीवंत और अभिनव पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करना है। डॉ. गुप्ता ने आगे कहा कि ऐसा होने पर यह क्यूटी के नेतृत्व में आर्थिक विकास को गति देने के साथ ही देश में पारिस्थितिकी तंत्र का पोषण करेगा और भारत को क्वांटम टेक्नोलॉजीज एंड एप्लीकेशन (क्यूटीए) के विकास में अग्रणी देशों में से एक बना देगा, डॉ. गुप्ता ने कहा। इसी तरह, अंत: विषयी साइबर भौतिकी प्रलाली पर राष्ट्रीय मिशन (नेशनल मिशन ऑन इंटरडिसिप्लिनरी साइबर फिजिकल सिस्टम –एनएम- आईसीपीएस) पर का समर्थन करने के लिए निजी क्षेत्र भी बड़े पैमाने पर साथ आ सकता है।
डॉ. गुप्ता ने कहा कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग 350 राज्य विश्वविद्यालयों के अनुसन्धान एवं विकास के आधारभूत ढाँचे (आर एंड डी इंफ्रास्ट्रक्चर) को पूरी तरह से फिर से नई दिशा देने और बदलने के लिए कड़ी मेहनत कर रहा है, जो फिलहाल राज्यों में बहुत दयनीय स्थिति में हैं।
इससे पहले, उद्घाटन सत्र में भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार के कार्यालय में वैज्ञानिक सचिव डॉ. परविंदर मैनी ने कहा कि सरकार, उद्योग, शिक्षा जगत और स्टार्ट-अप्स, सभी को विश्व स्तर के उत्पादों के सह-उत्पादन और सह-विकास एवं उचित समाधानों के लिए साथ मिलकर काम करना चाहिए। क्योंकि साइलो में काम करने का युग अब समाप्त हो गया है।
उन्होंने रेखांकित किया कि मुख्य कारण और भारत में अनुसंधान एवं विकास (आरएंडडी) बजट के बजट कम होने और इस क्षेत्र में आर रहे बड़े अन्तराल के मुख्य कारणों में से एक उभरती और अत्याधुनिक तकनीकों में बड़ा जोखिम लेने के लिए निजी क्षेत्र की लगभग नहीं के बराबर भागीदारी होना है।
डॉ. मैनी ने कहा, भारत में 90,000 स्टार्ट-अप्स में से केवल 12,000 प्रौद्योगिकी-आधारित हैं और उनमें से केवल लगभग 3,000 गहन तकनीकी स्टार्ट-अप हैं। उन्होंने कहा, जब तक उद्योग नवोन्मेषी और उज्ज्वल विचारों को वित्तीय सहायता नहीं देगा, तब तक भारत को उन अवसरों को गंवाता रहेगा, जो अब पूरी तरह फलने-फूलने की राह पर हैंI
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, केरल सरकार में पदेन (एक्स- ऑफिसियो) प्रधान सचिव प्रोफेसर के.पी. सुधीर ने अपने संबोधन में कहा कि उद्योग और स्टार्ट-अप्स की भागीदारी के साथ आने वाले दिनों में केरल में 4 विज्ञान पार्क स्थापित किए जाएंगे। उन्होंने यह भी बताया कि केरल देश का एकमात्र राज्य है जिसके पास एक अलग आर एंड डी बजट दस्तावेज है और इस वर्ष आवंटन 3500 करोड़ रुपये था ।
प्रोफेसर सुधीर ने पार्टनरिंग एकेडमिक इंडस्ट्रियल रिसर्च (पीएआईआर) योजना का उदाहरण देते हुए कहा कि इसका उद्देश्य अकादमिक-उद्योग सम्बन्ध (लिंकेज) के माध्यम से अनुप्रयोगी अनुसंधान (ट्रांसलेशनल रिसर्च) को बढ़ावा देना है। इस योजना में एक शोधकर्ता की पहचान करने की परिकल्पना की गई है, जो शोध (पीएचडी) या संबंधित भागीदार संस्थान के साथ डॉक्टरेट के बाद के कार्यक्रम की दिशा में काम करता है।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), दिल्ली के निदेशक प्रोफेसर रंगन बनर्जी ने अपने संबोधन में घोषणा की कि आईआईटी दिल्ली इस साल रोबोटिक्स में एम-टेक पाठ्यक्रम शुरू करेगा। साथ ही उन्होंने उद्योग जगत से इस मिशन का समर्थन करने की अपील की। उन्होंने कहा कि भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) को बाजार के लिए तैयार उत्पादों को विकसित करने के लिए एक नए मॉडल के माध्यम से कम से कम 300 से 400 पीएचडी को प्रायोजित करने के लिए उद्योग के साथ काम करना चाहिए।
जापान दूतावास के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के प्रथम सचिव रियुहेई निशी ने कहा कि भारत और जापान प्राकृतिक सहयोगी हैं और दोनों देशों के मानव संसाधनों को वैश्विक मानकों से मेल खाने वाले सर्वश्रेष्ठ विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी नवाचार (एसटीआई) उत्पादों को वितरित करने के लिए हाथ मिलाना चाहिए। उन्होंने दुख जताते हुए कहा कि लोगों के बीच परस्पर संपर्क बढ़ाने की जरूरत है और बताया कि जापान में केवल 1000 भारतीय छात्र हैं, जो चीन से 8 गुना कम हैं।
सीआईआई नेशनल मिशन ऑन टेक्नोलॉजी, इनोवेशन एंड रिसर्च, के अध्यक्ष विपिन सोंधी और आलोक नंदा, सह- अध्यक्ष (को-चेयर नेशनल) मिशन ऑन टेक्नोलॉजी, इनोवेशन एंड रिसर्च तथा कार्यकारी निदेशक, सीआईआई डॉ. आशीष मोहन ने भी इस बैठक को संबोधित किया।
इससे पहले, उन्नत सामग्री, विज्ञान प्रौद्योगिकी इंजीनियरिंग और गणित (एसटीईएम) में महिलाएं और उद्योग-अकादमिक सहयोग पर तीन सीआईआई थॉट लीडरशिप रिपोर्टें जारी की गईं।