बांगलादेश में अल्पसंख्यक संकट: अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से वैश्विक हस्तक्षेप की अपील

Minority crisis in Bangladesh: Appeal for global intervention from international community

नई दिल्ली: सेंटर फॉर डेमोक्रेसी, प्लूरलिज़म, एंड ह्यूमन राइट्स (CDPHR) ने प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम का आयोजन किया, जिसमें बांगलादेश में अल्पसंख्यक समुदाय, विशेष रूप से हिंदुओं के खिलाफ हो रही हिंसा और उत्पीड़न पर चर्चा की गई। इस कार्यक्रम का शीर्षक था “बांगलादेश में अल्पसंख्यक संकट: अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के लिए एक चेतावनी”।

कार्यक्रम में बांगलादेश में हो रहे हिंदू जातीय संहार पर विशेष ध्यान दिया गया, जिसे 5 अगस्त 2024 को शेख हसीना के अवैध निष्कासन के बाद तीव्रता मिली। CDPHR की ग्राउंड रिपोर्ट के अनुसार, हसीना के इस्तीफे के चार दिन बाद ही हिंसा की चौंकाने वाली घटनाएं हुईं, जिनमें 190 लूटपाट, 32 घरों का जलना, 16 मंदिरों का ध्वस्त होना और 2 सामूहिक दुष्कर्म जैसी घटनाएं शामिल थीं। 20 अगस्त तक, मानवाधिकार संगठनों ने हिंदुओं के खिलाफ 2,010 हिंसा की घटनाएं दर्ज की थीं, जिनमें 69 मंदिरों और 157 परिवारों पर हमले हुए थे।

जातीय संहार पर वैश्विक चुप्पी
कार्यक्रम में वक्ताओं ने बांगलादेश में हिंदू और अन्य अल्पसंख्यकों के नरसंहार पर वैश्विक चुप्पी पर चिंता व्यक्त की और इसे “मानवीय एवं सांस्कृतिक त्रासदी” करार दिया। CDPHR की अध्यक्ष डॉ. प्रेरणा मल्होत्रा ने अंतर्राष्ट्रीय हस्तक्षेप की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा, “दुनिया बांगलादेश में हिंदुओं के व्यवस्थित जनसंहार को मूक दर्शक बनकर देख रही है। कार्रवाई में विफलता मानवता की विफलता है।”

डॉ. मल्होत्रा ने बताया कि राज्य द्वारा प्रायोजित इस हिंसा ने “एक एक हिंदू को पकड़ो, उन्हें मार डालो” जैसे नारे सामान्य बना दिए हैं। उन्होंने मंयमेसिंह में 35 नकाबपोश चरमपंथियों द्वारा एक हिंदू महिला पर हमले और एक हिंदू पत्रकार की लिंचिंग जैसे भयावह घटनाओं का भी उल्लेख किया। डॉ. मल्होत्रा ने कहा, “यह उत्पीड़न की एकल घटनाएं नहीं हैं, बल्कि एक समुदाय को मिटाने के लिए चलाए जा रहे संगठित अभियान का हिस्सा हैं।”

उन्होंने दुनिया भर की सरकारों से चुप्पी तोड़ने और निर्णायक कार्रवाई करने की सशक्त अपील की।

भारत के लिए सुरक्षा संबंधी निहितार्थ
इतिहासकार प्रो. कपिल कुमार ने बांगलादेश में उग्रवाद बढ़ने के भारत पर प्रभाव पर चिंता जताई। उन्होंने कहा, “बांगलादेश में हिंदुओं के खिलाफ हो रही क्रूरता केवल एक मानवाधिकार संकट नहीं है, बल्कि यह भारत की सुरक्षा के लिए भी खतरा है। 4,000 किमी की सीमा पर आतंकवादी लॉन्च पैड्स के साथ, हम इस बढ़ते खतरे की अनदेखी नहीं कर सकते।”

उन्होंने इस मुद्दे पर निर्णायक कार्रवाई की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा, “यह नई कहानी नहीं है। 1946 के ‘प्रत्यक्ष कार्रवाई दिवस’ (Direct Action Day) से लेकर आज तक, हिंदुओं का जनसंहार जारी है। अगर 1971 ने दुनिया को हमारी दृढ़ता दिखाई थी, तो अब समय है कि हम उन्हें फिर से उसकी याद दिलाएं।”

वैश्विक कार्रवाई की अपील
CDPHR की रिपोर्ट बांगलादेश में अल्पसंख्यकों और राजनीतिक विरोधियों पर हो रहे संस्थागत उत्पीड़न को दर्शाती है। वक्ताओं ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से हिंदुओं के जनसंहार को मानवता के खिलाफ अपराध के रूप में पहचानने और उनके जीवन और अधिकारों की रक्षा के लिए अविलंब कार्रवाई करने की मांग की।

डॉ. प्रेरणा मल्होत्रा की समापन टिप्पणी में वैश्विक उत्तरदायित्व की आवश्यकता को रेखांकित किया गया, जिसमें उन्होंने कहा, “विश्व का मौन जनसंहार के प्रति सहमति है।”

इस कार्यक्रम ने बांगलादेश में अल्पसंख्यकों के खिलाफ हो रही हिंसा को एक गंभीर अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संकट के रूप में प्रस्तुत किया और वैश्विक हस्तक्षेप की मांग की।

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