संसद का एक और शीतकालीन सत्र शोर-शराबे और हंगामे के कारण सुर्खियों में रहा। लोकसभा और राज्यसभा की बैठकें अधिकांश समय पक्ष और विपक्ष के आरोप-प्रत्यारोप में घिरी रहीं। इस सत्र का समापन 20 दिसंबर को हुआ, जो कुल 26 दिनों तक चला था और इसकी शुरुआत 25 नवंबर को हुई थी। सत्र के आखिरी दिनों में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा डॉ. भीमराव आंबेडकर को लेकर की गई टिप्पणी पर विवाद गहराया, जिससे संसद में हंगामा मच गया।
सत्र का कामकाज
इस सत्र के दौरान दोनों सदनों में 20 बैठकें हुईं, जिनका कुल समय 62 घंटे रहा। लोकसभा में पांच सरकारी विधेयक पेश किए गए, जिनमें से चार विधेयक पारित हुए। साथ ही शून्य काल के दौरान अविलंबनीय लोक महत्व के 182 मामलों को दोनों सदनों में उठाया गया। हालांकि, सत्र का अधिकांश समय विरोध-प्रत्यारोप और हंगामे की भेंट चढ़ गया।
सबसे कम प्रोडक्टिविटी
2024 का शीतकालीन सत्र अब तक का सबसे कम उत्पादक सत्रों में से एक रहा। लोकसभा की उत्पादकता 57% रही, जबकि राज्यसभा की उत्पादकता केवल 43% रही। इस सत्र के दौरान संविधान पर चार दिन चर्चा हुई, लेकिन अधिकांश समय शोर-शराबे और हंगामे के कारण इस चर्चा का पूरा लाभ नहीं उठाया जा सका। यह सत्र 25 नवंबर को शुरू हुआ था और 19 बैठकों के साथ 17 दिसंबर को समाप्त हो गया।
संसद के कामकाज में गिरावट
संसद के कामकाज में गिरावट का यह सिलसिला नया नहीं है। अठारहवीं लोकसभा के बजट सत्र की उत्पादकता 135% रही, जबकि 17वीं लोकसभा ने 15 सत्रों में से 11 सत्र समय से पहले स्थगित किए। इसके अलावा, संसद की बैठकों की संख्या में भी गिरावट आई है। पहली लोकसभा में साल में 135 बैठकें होती थीं, जबकि पिछली लोकसभा में यह संख्या घटकर 55 रह गई।
सांसदों के निलंबन की संख्या में भी वृद्धि हुई है। पहली लोकसभा में जहां केवल एक सांसद का निलंबन हुआ था, वहीं सत्रहवीं लोकसभा में यह आंकड़ा 115 तक पहुंच गया। इसके अलावा, बिलों को स्टैंडिंग कमेटी में भेजने का प्रतिशत भी घटा है। 17वीं लोकसभा में केवल 16% बिल ही स्टैंडिंग कमेटी को भेजे गए, और कई बिल एक घंटे से भी कम समय में पारित हो गए।
लोकसभा अध्यक्ष का आह्वान
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने संसद की गरिमा बनाए रखने की सामूहिक जिम्मेदारी पर जोर दिया। अठारहवीं लोकसभा के तीसरे सत्र के समापन पर उन्होंने सदस्यों से अपील की कि वे संसद के भीतर और बाहर मर्यादा का पालन करें। उन्होंने यह भी कहा कि संसद के द्वार पर धरना या प्रदर्शन करना अनुचित है। ओम बिरला ने यह भी कहा कि संसद की उत्पादकता और गरिमा बहाल करना देश के लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के लिए अत्यंत आवश्यक है।
संसद का यह सत्र न केवल उत्पादकता के लिहाज से कमजोर साबित हुआ, बल्कि यह भी दिखाता है कि संसदीय कार्यों की गरिमा को बनाए रखने के लिए सभी सांसदों और नेताओं को गंभीर प्रयास करने की आवश्यकता है।