भोलेनाथ को क्यों नहीं चढ़ाते तुलसी के पत्ते? जानिए इससे जुड़ी पौराणिक कथा

भगवान शिव रऔर तुलसी  : हिंदू धर्म में भगवान शिव की पूजा का विशेष महत्व माना गया है और कहते हैं कि जिस व्यक्ति पर भोलेनाथ की कृपा होती है उसके जीवन में आ रही परेशानियां दूर हो जाती हैं. भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए लोग सोमवार के दिन व्रत रखते हैं और विधि-विधान से उनका पूजन करते हैं. क्योंकि धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सोमवार का भगवान शिव को समर्पित है. भगवान शिव की पूजा करते समय उन्हें भांग, धतूरा, बेलपत्र और कनेर का फूल अर्पित किया जाता है. लेकिन भूलकर भी उन्हें तुलसी अर्पित नहीं की जाती. लेकिन क्या आप जानते हैं कि पूजनीय होते हुए भी तुलसी के पत्ते आखिर भगवान शिव को क्यों नहीं चढ़ाए जाते? आइए जानते हैं इससे जुड़ी पौराणिक कथा.

इसलिए नहीं चढ़ाते भोलेनाथ पर तुलसी

शिव पुराण के अनुसार भगवान शिव को गलती से भी तुलसी नहीं चढ़ानी चाहिए. ऐसा करने पर भक्तों को उनकी नाराजगी का सामना करना पड़ता है. भगवान शिव और तुलसी के संबंध में शिव पुराण में जानकारी दी गई है. शिव पुराण में बताई गई पौराणिक कथा के अनुसार पूर्व जन्म में तुलसी का नाम वृंदा था और वह जालंधर नामक राक्षस की पत्नी थी. जालंधर भगवान शिव का ही अंश था लेकिन बुरे कर्माें के कारण उसका जन्म राक्षस कुल में हुआ. जालंधर को स्वंय पर बहुत घमंड था और वह इसी के चलते वह लोगों पर बहुत अत्याचार करता था.

उसके अत्याचार करने के बावजूद कोई भी उसका वध करने का साहस नहीं कर पाता था और यदि कोई साहस करता भी था और उसकी हत्या नहीं हो पाती थी. क्योंकि उसकी पत्नी वृंदा एक पतिव्रता पत्नी थी और इसी वजह से उसकी पति को कोई नुकसान नहीं पहुंचा पाता था.

ऐसे में जालंधर की मौत के लिए उसकी पत्नी वृंदा का पतिव्रत धर्म नष्ट होना बेहद जरूरी था. इसलिए लोगों को अत्याचार से बचाने के लिए भगवान विष्णु ने जालंधर का रूप लेकर वृंदा का पतिव्रता धर्म तोड़ दिया. जिसके बाद युद्ध के दौरान भगवान शिव ने जालंधर का वध कर दिया. इसके बाद वृंदा ने स्वंय का आत्मदाह किया और जहां उनका आत्मदाह हुअस वहां तुलसी का पौधा उग गया. पुराणों के अनुसार वृंदा के श्राप की वजह से ही भगवान शिव को तुलसी अर्पित नहीं की जाती.

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