सुना है बाग का कांटा बना है बाग का माली, हिन्दी साहित्य सम्मेलन में लगे ठहाके, जमकर बरसी तालियां

   रिपोर्ट- कपिल कुमार
औरंगाबाद। शहर की हृदयस्थली में अवस्थित श्री कृष्ण स्मृति भवन में औरंगाबाद जिला हिंदी साहित्य सम्मेलन के तत्त्वावधान में एक काव्य-गोष्ठी आयोजित की गई जिसकी अध्यक्षता संस्था के सम्मानित अध्यक्ष प्रोफेसर सिद्धेश्वर प्रसाद सिंह तथा संचालन अधिवक्ता अनिल कुमार सिंह ने किया। काव्य पाठ की शुरुआत सुरेश विद्यार्थी ने बड़े ही मधुर स्वर में सरस्वती वंदना से की। विभिन्न भ्रष्ट तंत्रों पर कुठाराघात करते हुए युवा कवि नागेंद्र केसरी ने कहा — “सुना है बाग में नरगिस यहां डर कर निकलती है, सुना है बाग का कांटा बना है बाग का माली।” सीमा पर शहीद होने वाले वीर बांकुरों के प्रति सामान्य जन मानस की भावनाओं को प्रदर्शित करते हुए कवि अनिल अनल ने कहा- “लहर-लहर लहराए झंडा आसमान पर छाए, कोटि-कोटि कंठ भारत के वंदे मातरम् गाए।” व्यंग्य के बादशाह विनय मामूली बुद्धि ने देश के साथ गद्दारी करने वालों को आड़े हाथों लेते हुए कहा-“आस्तीन का सांप पालना कहां सबकी तकदीर है, मैं सम्मोहित सुगंध हूं चंदन मेरा तासीर है। सुधि श्रोताओं के आग्रह पर महामंत्री धनंजय जयपुरी ने एक व्यंग्यात्मक कविता “हम्मर करा दऽ शादी” की बड़ी ही मोहक प्रस्तुति दी जिस पर जमकर तालियां बरसीं। उर्दू ज़बान का नवोदित कलमकार हिमांशु चक्रपाणि की ग़ज़ल” इसी ज़मीं को चलो आसमान करते हैं, लगाके पंख इसी पर उड़ान करते हैं। जमीन लूट लिया है यदि अमीरों ने, तो फिर गरीबों के दिलों में में मकान करते हैं” पर तालियों की गड़गड़ाहट से वातावरण गुंजायमान हो गया। शिक्षक अविनाश कुमार की श्रृंगार रस से परिपूर्ण कविता-“नेताओं की तरह प्रेमिकाएं भी आश्वासन देने की कला में सिद्धहस्त होती हैं, मजनुएं प्रतीक्षा में त्रस्त होते हैं, लैलाएं तड़पाने में मस्त होती हैं” ने प्रेक्षागृह में उपस्थित श्रोताओं दर्शकों को तालियां बजाने पर मजबूर कर दिया। कवि रामाधार सिंह, कुमार शानू, रोहित कुमार, नागेंद्र पांडेय राम रंजन कुमार इत्यादि की कविताएं भी काफी सराही गईं। उपाध्यक्ष डॉ सुरेंद्र प्रसाद मिश्र ने कहा कि साहित्य से मनुष्य को मानसिक खुराक प्राप्त होता है। अध्यक्ष प्रोफेसर सिद्धेश्वर प्रसाद सिंह ने कहा की साहित्य, संगीत और कला के बिना मनुष्य पशु समान होता है। धन्यवाद देते हुए रविंद्र शर्मा ने कहा की साहित्य की समृद्धि के लिए अनवरत साहित्यिक गोष्ठियों का होना परम आवश्यक है। इस गोष्ठी में उपरोक्त लोगों के अलावा नीलमणि कुमार, रामानुज प्रभात, नवीन पांडेय, रवि शेखर बिट्टू, सौरभ रंजन, अमित कुमार, मनोज कुमार, मंटू शर्मा, सुशील शर्मा इत्यादि प्रबुद्ध जन उपस्थित थे।

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