वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने हाल ही में कहा कि मौजूदा वैश्विक परिस्थितियों में भारत को व्यापार और निवेश बढ़ाने के लिए द्विपक्षीय संबंधों को प्राथमिकता देनी होगी। उन्होंने यह भी जोर दिया कि बहुपक्षीय संस्थाओं की प्रभावशीलता में कमी आ रही है, जिसके कारण देशों को अब सीधे द्विपक्षीय वार्ता और समझौतों की ओर रुख करना पड़ रहा है।
द्विपक्षीय रिश्तों की अहमियत क्यों बढ़ी?
सीतारमण ने ‘बीएस मंथन’ कार्यक्रम में कहा कि वर्तमान समय चुनौतीपूर्ण जरूर है, लेकिन यह भारत के लिए खुद को वैश्विक आर्थिक इंजन बनाने का एक सुनहरा अवसर भी है। उन्होंने कहा, “द्विपक्षीय संबंध अब प्राथमिकता में हैं, क्योंकि न केवल व्यापार और निवेश बल्कि रणनीतिक दृष्टिकोण से भी ये रिश्ते बेहद लाभकारी साबित हो रहे हैं।”
बहुपक्षीय संस्थाओं की घटती भूमिका
वित्त मंत्री ने यह भी कहा कि वैश्विक संस्थाएं धीरे-धीरे कमजोर हो रही हैं और इन संस्थाओं को पुनर्जीवित करने के प्रयास अब तक प्रभावी नहीं साबित हो रहे हैं। विश्व व्यापार संगठन (WTO) जैसी संस्थाओं की भूमिका अब सीमित होती जा रही है, और अब “सर्वाधिक तरजीही राष्ट्र” (MFN) की अवधारणा भी अप्रासंगिक होती दिख रही है। उन्होंने यह भी कहा कि हर देश चाहता है कि उसे विशेष व्यवहार मिले, जिससे व्यापार और निवेश के पुराने नियम बदल रहे हैं।
भारत की नई व्यापार नीति
भारत ने ब्रिटेन, अमेरिका और यूरोपीय संघ जैसे देशों के साथ द्विपक्षीय व्यापार वार्ताओं को तेज किया है। इसके साथ ही भारत और अमेरिका के बीच संभावित व्यापार समझौते पर चर्चा हो रही है, जबकि यूरोपीय संघ के साथ मुक्त व्यापार समझौते (FTA) पर बातचीत जारी है।
राज्यों को भी सुधारों में भागीदारी जरूरी
सीतारमण ने यह स्पष्ट किया कि आर्थिक सुधार केवल केंद्र सरकार की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि राज्यों को भी इसमें सक्रिय भागीदार बनना होगा। उन्होंने कहा, “राज्यों को आपसी प्रतिस्पर्धा के माध्यम से अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करने पर ध्यान देना चाहिए। राज्यों को यह सोचना चाहिए कि उनकी अर्थव्यवस्था दूसरों से बेहतर कैसे हो सकती है।”
नए वैश्विक व्यापार परिदृश्य में भारत की भूमिका
वित्त मंत्री ने अंत में कहा कि भारत को नए वैश्विक व्यापार मॉडल के अनुरूप अपनी रणनीतियां तैयार करनी होंगी। व्यापार और निवेश में द्विपक्षीय सहयोग को प्राथमिकता देना, वैश्विक बदलावों के अनुरूप खुद को ढालना और आर्थिक सुधारों को गति देना, यही भारत को एक मजबूत आर्थिक शक्ति बनाने का रास्ता है।